इंद्रजाल वशीकरण
इन्द्रजाल का नाम सुनते ऐसा लगता है की जैसे कोई मायावी प्राचीन विद्या है , तथा लोग इसको तंत्र मंत्र और तांत्रिक विद्या से जोड़ते है और कभी कभी किसको वशीकरण , सम्मोहन , से भी लोग जोड़ते है ,यह भारत में प्रचलित जादू से भी जोड़ा जाता है , और यह बहूत प्रचलित है , जादू भी सम्मोहन से जुड़ी एक कला है ,इसमें कई प्रकार प्रकार के कार्य किये जाते है , प्रकाश एवं रंगादि के प्रयोजनीय वस्तुओं के आश्चर्यजनक खेल, तामाशे आदि सभी का प्रयोग किया जाता है। इन्द्रजाल से संबंधित कई किताबें बाजार में प्रचलित है। प्राचीनकाल में इस विद्या के कारण भी भारत को विश्व में पहचाना जाता था। देश-विदेश से लोग यह विद्या सिखने आते है । आज भी कई देशों में तरह-तरह की जादू-विद्या लोकप्रिय है तो इसका कारण है भारत का ज्ञान और यह इंद्रजाल की कला ही है जिसका उपयोग पश्चिमी धर्मों व सम्प्रदायों के प्रचार के लिए लोगों को डराकर, सम्मोहित कर या छलपूर्ण तरीके से उन्हें अपना आज्ञाकारी अनुयायी बनाने के लिए इसका उपयोग करते है |
साधना-
इसकी साधना अधिकतर तांत्रिक द्वारा ही होती है और अघोरी के द्वारा यह साधना की जाती है यह साधना विधि सबसे ज्यादा रहस्यमयी है। और रात्रि में करने वाली है , इसको करने वाले को अपनी जीवन शैली, में बदलाओ करना है , इसका अपना अलग विधान और अपनी अलग विधियां होती है , अपना विधान है, इसको करने वाले अघोरी कहते है, इसकी विधि बहुत सरल और सहज होती है जिसके मन में कोई भेदभाव न हो, जो हर चीज में समान भाव रखता हो वही अघोरी है वे सड़ते हुए जीव के मांस को भी उतना ही स्वाद लेकर खा सकते हैं जितना स्वादिष्ट पकवानों को स्वाद लेकर खाया जाता है , इनकी दुनिया बिल्कुल अलग होती है , और साधना भी ,यह साधना श्मशान में की जाती है इसलिए यह लोग श्मशान में रहना ही ज्यादा पंसद करते हैं। ज्यादातर श्मशान में साधना करने से शीघ्र ही फल मिलता है क्योंकि श्मशान में साधारण मानव जाता नहीं है इसीलिए साधना में विध्न उत्त्पन्न नहीं कर सकता ,इसको करने वाले हठी होते , इसकी साधना मुख्यता तीन तरह की है,
शिव साधना –
यह साधना रात्रि को की जाती है और इसमें किसी शव को नहला कर साफ़ कर के पूजा की जाती है और उस शव के ऊपर एक पैर से खड़े होकर अपने गुरु मंत्र यह बीज मंत्रो का जाप करते है , और महाकाल की पूजा की जाती है ,
शव शाधना – इस साधना में महाकाली की पूजा की जाती है , और किसी मनुष्य की बलि दी जाती है और उस बलि में चढ़ा हुआ मानव का ही प्रसाद ग्रहण किया जाता है , और मदिरा भी पूजा में चढाई जाती है ,यह इच्छा पूर्ण करने की साधना होती है, यह ज्यादातर अमावश्या को ही की जाती है ,
श्मशान साधना – यह परिवार के साथ की जाने वाली साधना है , इस साधना में मांस ,मदिरा की जगह गंगा जल एवं मावां चढ़ाया जाता है , इसमें भद्रकाली की पूजा पुरे परिवार के साथ श्मशान में की जाती है , यह भी साधना रात्रि में होती है
मंत्र-
सम्मोहन मन्त्र-
इसके मन्त्र बहूत शक्तिशाली होते है
( रा राखौ, बरैनी, मूँह म राखौं कालिका। चण्डी म राखौं मोहिनी, भुजा म राखौं जोहनी। आगू म राखौं सिलेमान, पाछे म राखौं जमादार। जाँघे म राखौं लोहा के झार, पिण्डरी म राखौं सोखन वीर। उल्टन काया, पुल्टन वीर, हाँक देत हनुमन्ता छुटे। राजा राम के परे दोहाई, हनुमान के पीड़ा चौकी। कीर करे बीट बिरा करे, मोहिनी-जोहिनी सातों बहिनी। मोह देबे जोह देबे, चलत म परिहारिन मोहों। मोहों बन के हाथी, बत्तीस मन्दिर के दरबार मोहों। हाँक परे भिरहा मोहिनी के जाय, चेत सम्हार के। सत गुरु साहब ।)
यह मन्त्र स्वयं सिद्ध मन्त्र है और शुभ समय में इसका १०८ बार जपने से विशेष फल देता है नारियल, नींबू, अगर-बत्ती, सिन्दूर और गुड़ का भोग लगाकर १०८ बार मन्त्र जपने से । इच्छाएं पूर्ण हो जाती है यह मन्त्र का प्रयोग कोर्ट-कचहरी, मुकदमा-विवाद, आपसी कलह, शत्रु-वशीकरण, नौकरी-इण्टरव्यू, उच्च अधीकारियों से सम्पर्क करते समय करने से आप को सम्मोहन की छमता आ जाती है ।
प्रेम सम्मोहन मंत्र-
यह मंत्र पढ़ने से स्त्री वश में आ जाती है यह कामाख्या देवी के मंत्र है ,
(जहॉं बसे इस्माइल जोगी,
इस्माइल जोगी ने लगाई फुलवारी,
फूल तोडे लोना चमारी,
जो इस फूल को सूँघे बास,
तिस का मन रहे हमारे पास,
महल छोडे, घर छोडे, आँगन छोडे,
लोक कुटुम्ब की लाज छोडे,
दुआई लोना चमारी की,
धनवन्तरि की दुहाई फिरै।’)
” यह मंत्र शनिवार से आरम्भ करके 31 दिनों तक लगातार 1144 बार मंत्र का जाप करे तथा उसके साथ दीप जलाये और शराब ले , फिर किसी फूल को 50 बार मन्त्र से फूक मारकर स्त्री को दे वह उस फूल को सूँघते ही आपके वश में आ जायेगी ,।
शत्रु नाशक मन्त्र –
जब किसी का मित्र ही शत्रु बन जाये तो हमारा हाल बहूत बुरा कर देते है , उसके लिए यह मंत्र का 7 दिन 108 बार जप करने से शत्रु नाश हो जाता है
मंत्र
(॥ ॐ चामुंडे कुर्यम दंडे अमुक हृदय मम हृदयं मध्ये प्रवेशाय प्रवेशाय प्रवेशाय स्वाहा ॥ )